माँ दुर्गा की महिमा: ‘जय अम्बे गौरी’ आरती का अर्थ, नवरात्रि पूजन विधि और शक्ति की अनुभूति

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– माँ दुर्गा: करुणा में शक्ति, शक्ति में करूणा

माँ दुर्गा वह देवी हैं जो सृष्टि की रचना, पालन और संहार तीनों करती हैं। वह शक्ति का ऐसा रूप हैं जिसमें करुणा भी है और क्रोध भी। जब अधर्म बढ़ता है और धर्म संकट में आता है, तब माँ दुर्गा सिंह पर सवार होकर राक्षसों का वध करती हैं — पर जब भक्त पुकारता है, तो वही माँ ममता से उसे आशीर्वाद देती हैं। ‘जय अम्बे गौरी’ आरती में माँ के इसी विराट रूप की वंदना की जाती है — जहाँ वे न केवल ब्रह्मांड की जननी हैं, बल्कि प्रत्येक जीव की रक्षा करने वाली माता भी हैं।

माँ दुर्गा के नौ रूप और उनका संदेश

नवरात्रि में माँ दुर्गा के नवदुर्गा स्वरूपों की पूजा होती है। हर दिन माँ का एक अलग रूप — शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री — भक्तों को शक्ति, विवेक, निर्भयता, ज्ञान, सौंदर्य, शुद्धता और सिद्धि प्रदान करता है। ये रूप यह सिखाते हैं कि शक्ति केवल बाहरी नहीं, भीतर की भी होती है — जिसे जागृत करने से व्यक्ति जीवन के हर संकट से लड़ सकता है।

आरती: ‘जय अम्बे गौरी’ – भाव और अर्थ

“जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।”

यह आरती माँ दुर्गा की त्रिगुणात्मक शक्ति को प्रणाम करती है — जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों के लिए पूज्य हैं। इसमें माँ के स्वरूपों का वर्णन है — सिंह वाहन, त्रिशूलधारी, रुधिर पीने वाली चंडिका और ममता से ओतप्रोत अम्बे। इस आरती को गाते समय भक्त माँ की छवि को आंखों में देखता है — शक्तिशाली, तेजस्विनी, और भक्तवत्सला।

“जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।”
जब भी कोई माँ को सच्चे हृदय से याद करता है, उसके मन के दुख दूर होते हैं। यह आरती केवल वाणी से नहीं, हृदय से गाई जाती है — और तभी वह माँ तक पहुँचती है।

नवरात्रि व्रत और पूजन विधि

  • घटस्थापना (कलश स्थापना) से पूजा की शुरुआत होती है। मिट्टी में जौ बोए जाते हैं और कलश पर नारियल स्थापित किया जाता है।
  • नौ दिन माँ के नौ रूपों की पूजा होती है। हर दिन विशेष रंग के वस्त्र, भोग, और मंत्र होते हैं।
  • अखंड ज्योति जलाई जाती है — जो भक्त और माँ के बीच का दिव्य सेतु बनती है।
  • अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन किया जाता है — 9 कन्याओं को माँ के रूप में पूजकर भोजन कराया जाता है।

नवरात्रि व्रत में केवल भोजन नहीं त्यागा जाता, अपितु अहंकार, आलस्य और बुरे विचारों का भी त्याग किया जाता है। यह व्रत शक्ति के भीतर जागरण की साधना है।

पौराणिक कथा: महिषासुर वध और माँ का अवतरण

जब असुरराज महिषासुर ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया और देवता हार गए, तब तीनों देवताओं की शक्ति से माँ दुर्गा का प्राकट्य हुआ। वे दस भुजाओं से सुसज्जित, त्रिशूल, चक्र, खड्ग, धनुष आदि शस्त्रों से युक्त थीं। सिंह पर सवार होकर उन्होंने महिषासुर से नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसलिए विजयादशमी (दशहरा) शक्ति की विजय का पर्व माना जाता है।

भक्ति का प्रभाव और अनुभव

जो भी भक्त श्रद्धा और निष्ठा से माँ दुर्गा की पूजा करता है, उसके जीवन में शांति, सामर्थ्य और सुरक्षा का संचार होता है।

  • मानसिक भय दूर होते हैं
  • स्त्रियों को आत्मबल प्राप्त होता है
  • व्यापार और घर में सुख-समृद्धि आती है
  • मनोबल और साहस का स्तर ऊँचा होता है

‘जय अम्बे गौरी’ आरती केवल स्तुति नहीं, एक आह्वान है — माँ शक्ति को अपने जीवन में बुलाने का। जब कोई भक्त इस आरती को गहन श्रद्धा से गाता है, तो माँ की कृपा मात्र बाहर से नहीं, भीतर से महसूस होती है। माँ दुर्गा केवल देवी नहीं — वे वो शक्ति हैं जो एक सामान्य स्त्री को भी दुर्गा बना सकती हैं। जो माँ को पुकारता है, उसे कोई नहीं डरा सकता।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

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